कविता - 🌷 " प्यासी नदी "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
छ़ोटी-बड़ी, आधी-अधूरी, अच्छी-बुरी सी
मानो प्यास की बहतीं हुई, "प्यासी नदी"…
प्यास के इस महा-विनाशकारी दरिया में
उछलती हुई प्यास, कईं कईं किस्मों की…
सख़्त गर्मियों की तपिशमें धरती की सांस
सृष्टि तरसती हुई, बूंद-बूंद पानी की प्यास…
ज्ञान के सागर में डुबकी लगाने की प्यास
सुख से भरें लम्हों की अनबुझी सी प्यास…
इतने बड़े जहां में मुट्ठी भर का प्यार-दुलार
थोड़ा अपनापन मिलें बस्स इतनी सी प्यास…
मरने से पहले, कुछ कर दिखाने की प्यास
उसके लिए पूरी ज़िंदगी में खूब सारा प्रयास…
"आख़िर कोई तो समझे हमें" यहीं-एक-प्यास
धनदौलत, अनगिनत अमीरी की-भूख-प्यास…
अकेलेपन की जकड़न से बाहर निकल कर,
प्यारे-दिलोंकी बेहद-प्यास, सपनों के हमसफ़र…
पल-दो-पल की, मुश्किलों से घिरी ज़िंदगी में
सुकून के साथ-साथ, अधिक जीने की प्यास…
अंधेरी-दुनिया की बुझी-बुझी सी निगाहें-प्यासी,
भले एक-आंखसे-ही-सही, चाह-दुनिया-देखनेकी…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉️🔆
Leave a Reply