कविता :🌷 " न जाने क्यों "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
हाथ में गर्म चाय की प्याली, थामे हुए…
घर-आंगनमें सुनहरी धूपमें सेंकते हुए,
न जाने क्यों यादें ताज़ा होके गाती हैं…
जब बारिश की रिमझिम गूंजें कानों में,
धरती की मीठी सी महक भरे सांसों में,
न जाने क्यों वो गुनगुनाकर उछलती हैं…
मन में यादों की पवन धूम सी मचा दें…
हाथों में हाथ डालके नाचें-शोर मचायें,
न जाने क्यों वो नयी सूरतमें नाचती हैं…
वो बातें, वो चांदनी रातें, वो मुलाक़ातें…
भुलाएं भूलती नहीं, रहती है बनके यादें…
न जाने क्यों सांसों के साथ, महकती है…
जब ख़ामोशी में अंदर का शोर सुनाई दें,
दिलके दहलीज पे जोरशोर से दस्तक दें…
न जाने क्यों वो पुरानी यादें ताज़ा होती हैं…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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