कविता – 🌷 ” कुछ दृश्य-कुछ अदृश्य दीवारें “
कवयित्री – तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख – १ डिसेंबर २०१६
बहुत सुंदर, प्यारी तस्वीरें देखी सीनरी की …
गौरसे देखा,पता चला-थी चायना-वॉल की …
दुनियाका एक अजूबा-चायना-वॉलका नजारा !
बहुत पुराने जमानेमें सब लोग शत्रूओंकें हमलोंसे …
बचने के एकमात्र हेतुसेही उंची तटबंदीयां बनाते थे …
आजके नये इस दौरमें …मनुष्य स्वयं के इर्दगिर्द …
पूरी तरहसे, बूरी तरहसे …कईं दीवारें खडी करके,
भिन्न-विभिन्न दीवारोंसे, स्वयंके अहंको बढावा देता है …
इसी भीतरी हेतूसे, तन-मन को पूरी तरहसे ढंक लेता है …
और मन-ही-मनमें सुलगते-अंगारोंको हवा देता रहता है !
दो देशोंके बिचकी दीवार, कहलाती है सरहद-देशकी सीमा,
दो इन्सानोंके बीच द्वेष-गुस्सेकी दिवार, हीनता-कटुता-शत्रूता !
जात- पातकी दीवारें …उंच – नीचकी दीवारें …
अमिरी-गरिबीकी दीवारें …भेद-भाव-की दीवारें …
ऐसी कईं अनगीनत-अनदेखी-अकल्पनीय दिवारें …
बिना वजह ही, रातों-रात में यूँ ही खडी हो जाती हैं …
मानो जहरीली-मशरूम की भान्ती पूरे खेतमें फैल जाती हैं !
दिल-दुख, मन-मुटाव जैसे कारणोंसे-काँक्रीट से भी,
कई गुना जादह मजबूत, सस्ती, टिकाऊ हो जाती है …!
यें लोगोंके दिलों-दीमागपर बूरी-तरह से छा जाती हैं …!
दीवारें, कुछ दृश्य रुपसे; तो कईं खडी अदृश्य रुपसे …
हम सब को चाहिये की तुरंत यें सारी-की-सारी दीवारें,
दिलों-जान से गिराकर जल्दसे-जल्द ढेर कर दी जायें …
और फिर बिल्कुल नये सिरे से, नये-ताजे नजरीये से, …
एक नये अंदाजसे जिंदगी फ़िरसे जीना, दुबारा शुरु करें …
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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