
कविता : 🌷 " जुड़ न पाया "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
जाने क्यूं लोग, ऐसा किया करते रहते हैं…
दिल तोड़नेके सौ-सौ बहाने ढूंढ ही लेते हैं…
दिल भी ऐसा पागल के जल्दी से मानें ना…
कितना समझाने पर भी वो बात छोड़े ना…
उछल के गेंद की तरह फ़िर वापस आया…
लोगोंको पता भी न चला कि"वो टूट गया" !
वो तो उनकी धुन में, जैसे कुछभी न हुआ…
मायूस दिल बेचारा हक्का-बक्का सा रहा…
दिल इतना कोमल, टूट के बिखर ही गया…
अबतक कोशिशें जारी हैं पर जुड़ न पाया…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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