कविता : 🌷 " सपने चोरी हुएं "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
दर्पण तो अपनी ही परछाई बहुत खूब दिखलाते हैं,
ख़्वाब वो आईना है, ज़िंदगी के मौजों की रवानी के…
एक अरसा हुआ मन-ही-मनमें छुपी-हसरतें कईं कईं
नींद जब उड़ गई तबसे आंखें खुली-की-खुली ही रही…
ख़्वाबों की दुनिया भी अजीबो-ग़रीब हुआ करती है
जो भी ख़्वाबों में दिखाई देता हैं सब गायब होता है…
हसीन सी चांदनी रातमें दरवाजा खटखटाया किसीने,
झांक के देखा तो अनगिनत सितारें, हंसकर चल पड़े…
गौर से उपर की ओर देखा तो चंद्रमा मुस्कुराता हुआ,
फ़िर भी इशारा ना समझा, ख़्वाबों में डूबा डूबा हुआ…
दिल तो दीवाना बना हुआ दौड़े कभी सपनों-के-पीछे,
तो कभी-कभार डर-डर के दुनियादारी के पीछे पीछे…
ना ख़्वाबों ने उसे मायूस किया न डराया-धमकाया,
पर पत्थर-दिल दुनिया-वालों ने उसे पागल ठहराया…
रात-रातभर अधखुली आंखोंसे डूबा हुआ ख़्वाबोंमें
जितने भी बांध लिये थें पत्तों के बंगले, सब ढेर हुएं…
अब ढिंढोरा पीटना पड़ रहा है कि हम लूट लिये गएं…
हमारी अपनी ही आंखों से नींद और सपने चोरी हुएं…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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