कविता :🌷" एक ऐसी लकीर "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
काश एक ऐसी लकीर अपने हाथों में ले आते,
पूरी-पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती, देखते देखते…
लम्हों का क्या है उनका तो काम है, आना-जाना
कभी जुदाई तो कभी-कभार का मिलना-जुलना…
अपने ख़यालात और जज़्बातों के हाथों, लाचार…
काश वो लकीर बदल डालें, हालातों का शिकार…
जीने का शहद और जुनून जब घुल-मिल जाएगा,
आयुष मानो अमृत का सागर बनें उछल जाएगा…
दुख-दर्द-क्लेश अपने-आप नौ-दो ग्यारह हो जाएं…
हर पल एक नया तरो-ताजा एहसास लेकर आएं …
पहली पहल बारिश की बूंद-बूंद नव-चेतना जगाएं,
माटी की सुगंध सांस-सांससे नस-नसमें यूं भर जाएं…
काश एक ऐसी लकीर अपने हाथोंमें लेकर आ जाऊं,
पल-दो-पल के अंतराल में इक सपनों सा संसार बुनूं…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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