कविता : 🌷 " सैलाब "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
सितारों को लेकर, रात तो निकल ही गई…
मगर ज़िंदगी, यूं प्यासी-की-प्यासी रह गई…
घाट का एक-आध ख़ामोश सा कोई पत्थर,
क्या जाने-समझेगा, नदी के मन की टक्कर…
मौसम अभी पूरी तरहसे रूखसत हुएं नहीं,
और ज़िंदगी बस्स वहीं-की-वहीं है रूकी सी…
वफ़ा के बदले तो बेवफ़ाई देता है सारा जहां…
भला चाँद की फ़ितरत भी, पहले जैसी कहाँ…
इंतज़ार करते रहें, वक़्त हाथोंसे यूं निकल गया…
अब आते-जाते-दिन और रात का हिसाब कहाँ…
समां ऐसा की, साहिलों पर सैलाब आ रहा हो…
जज़्बात ऐसे हैं कि ख़ामोशी से बसर भी न हो…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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