कविता :🌷 अहम्
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
कभी-कभार मनुष्य को बिना किसी भी वजह से,
कुछ-घमंड, कुछ 'अहम्' होके वो इतराने लगता है…
फ़िर वो तो बस्स हवाओं में, यूं ही उड़ने लगता है…
सोचके "हमारे जैसा इस संसार में कोई भी नहीं है…
दाता ने हमें ही बनाया है बुद्धिशाली-सबसे-बेहतर
सृष्टि में और सब-के-सब है सिर्फ मानवों के नौकर"…
पर वस्तुस्थिती इस से बिल्कुल ही विपरित होती है
हर कोई जानता है ज़िंदगी जीने के खूब तौर-तरीके…
फ़िर चाहे वो इत्ती सी चींटी हो, या हो बड़ासा हाथी
हर मौसम में, स्थिति में दिखाते शांतिपूर्ण होशियारी…
हर हालमें आपत्तिसे बचके, स्वयंको सुरक्षित रखना…
ये ज्ञान हर जीव-जंतु-पंछी-प्राणीमात्र खूब है जानता…
शास्त्रज्ञों ने जीवों को देखके ही, निकालीं कईं खोजें
चतुर को-देखके-हेलीकॉप्टर-सेंटीपीडको देखके ट्रेनें…
हर कोई अपनी-अपनी जगह बेहद बुद्धिमानी ही है
पर्यावरण में हर एक अपना-अपना योगदान देता है…
जिन यंत्रों को बनानेमें सदियां लगी मानव-जाती को,
पलक झपकते ही नष्ट कर देती है कायनात सभीको…
जो बेकारका घमंड करें, फ़िर कौन करें उसकी सुरक्षा ?
ईश्वर ने हर जीवको इकलौता, एकमात्र-जीवन है बक्षा…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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