कविता : मन के झरोखों से
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
पहाड़ों जैसे इतने ऊंचे ख़याल की हवा के साथ ही,
निकल पड़े हैं उड़ान भरने, बस्स तमन्ना के बिना ही…
दिल ढूंढता है तमन्नाओंको जो जहांमें हैं, कोहरा बने…
एक झलक दिखलाई और मानो लुका-छिपी खेलें है…
आरज़ू तो है कि दिलके चमन में फूल-फूल खिल उठें…
ओस की हर बूंद-बूंद सूरजकी किरणोंसे दमकती रहें…
दिल ऐसा गुस्ताख़ है कि ना जीने की तमन्ना अब रही,
ना कुछ करनेकी तमन्ना, बस्स यादों-ही-यादोंमें खो गई…
कोशिश यें हैं कि अंतर्मन से दिली तमन्ना रुख़्सत न हो…
प्रेम-दीपक बुझानेकी नौबत किसी पे कभी आती न हो…
मन के झरोखों से ऐसी कशिश निकली, तस्वीर बन गई…
सीनेमें खुशियों की बारिश हुई, ज़िंदगी जन्नत सी हो गई…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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