
कविता - एक नगमा
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
मौसम ज़रा रंगीन सा, नजारा है देखने जैसा
मौजों की मस्ती में, साहिल कुछ घायल सा…
ऐसे में मानो दरिया में, सैलाब ही आ जाएगा
मदहोशी का आलम, नैनों में यूं बदरा छाएगा…
बिजली सी चमक रही, सागर भी उछल पड़ा
मचा है शोर, साहिलों पर सैलाब उमड़ आया…
शर्माती हुई शाम, दबें पाँव आने को है तैयार
सूर्य गुज़रने वाला है, पंछी हो गए हैं होशियार…
यूँ ही झांक रहा है, पानी के दर्पण में से चंद्रमा
उसे देख-देख साहिल गा रहा है प्यारासा-नगमा…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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