कविता - खुशियों की सौग़ात
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
मिलतीं हैं कभी-कभी, ऐसी ख़ुशियों की सौग़ात…
उनकी आहट सुन कर ही, रौशन-होती रही-रात
हरेक पल पुकारता रहा दिल, धड़कनों के साथ…
इतनी कशिश मनमें कि मिलें-जन्म-जन्मका-साथ
हसीनसी चाँदनी-रात फ़िरभी सागर-को-परेशानी…
चाँद आस्मांसे उतरा और यूं उछलने-लगा-पानी
बहारों ने लुटाई ख़ुशबू, उनके आने-से-पहले-ही…
उनकी आहटसे ही माहौलमें मदहोशी सी छायीं
आवाज़ तो दे ही चुकें हैं, बड़े-नाज़के-साथ-साथ…
अब चाहे उठाने पड़ें भी उनके लाख-लाख-नाज़
मुद्दतें हो गई हैं आँखें बिछा के राह तकते-तकते…
अब चाँद भी तरस रहा है, उनकी-झलक-को-पाने
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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