
कविता - 🌷 " कशिश "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
न जाने क्यूँ, इस दिलमें-सदा-कशिश-होती है...
जितनी चाहे कोशिशें यूं करके देख ली हमने...
मंज़र कोई भी हो, चाहत कम नहीं होती है...
उगते-ढंलते सूरजके रंगोंका लुत्फ आस्मांनमें...
रातका समां बाँधता है चन्द्रमा, चांदनी के संग
वो दिलकश नज़ारा देखकर मन कशिशमें दंग...
मिलों दूर तक समंदर, उसकी उंची-उंची लहरें...
घंटो देखके-आँखोंकी-प्यास-बुझनेका-नाम-न ले
ये कशिश का मानो रोग तो नहीं लग गया हमें ?
लाख कोशिशों के बावजूद वो पीछा ही न छोड़े...
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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