कविता – 🌷 ‘ महान्-हस्ती ‘

कविता - 🌷 ' महान्-हस्ती '
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - रविवार, २१ एप्रिल २०२४
समय - दोपहर, ३ बजकर ०२ मि.

स्वयं सारे दुख-कष्टोंको सह के...
जन्म देकर लाड-प्यारसे जिसे...
एक अच्छा इन्सान बनाया...

उसी अपने बेटेसे होती है अपेक्षा...
चाहे जितना भी पढ-लिखकर,
सबसे ऊंचा पद ग्रहण-करे,
हो जाये सचमूच का बडा...

चाहें कुछ भी हो जायें,
चाहें दुनिया इधर की
उधर हो जाये...
किसीसे भी पडे वास्ता ...
दुनिया में सबसे बडा है,
माँ और बेटेका रिश्ता...

अपनी बेटीसे होती हैं अपेक्षा ...
माँ के आधी उमरकी भी,
अगर होती है, उसकी बेटी ...
ममता कम ना होने देंगी ,
माँ अपनी, कभी भी ...

बेटी के लिये माँ
सब-कुछ सदा है सहती,
मान-सम्मान का भाव,
कम न हो कभी
कभी भी शब्द, अपशब्दमें ना बदलें...
कृतज्ञता की भावना मन से न निकले...
जहाँ भी जाये, नाम रोशन करे...

क्यूँ की पूरे संसार मे,
अपने माँ-के जैसी, और कोई भी
नहीं होती महान्-हस्ती !

🌷@तिलोत्तमा विजय लेले

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