
कविता - 🌷 " हसीन सपने "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
वो भी क्या दिन थे, चुटकी भर में खत्म हो जाते...
सुबह-शाम घंटों फोन पर बातें, मिलने के वास्ते...
जब दौड़ते हुए मिलने पहुंचते, बड़ी ठंडक मिलती
बातों में समय यूं बीतता,मानो खुलीं इत्र की शीशी
कभी कोई शिकवा नहीं, ना कोई शिकायत मन में
दोनों भी ऐसे मग्न, एक-दूसरे की मर्ज़ी-संभालने में
बिना बताए बिना बोले, वो सबकुछ समझ जाते थे
जितने हसीन सपने संजोए थे, साकार होने लगे थे
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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