कविता - 🌷 ' सोच '
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - शुक्रवार, १० मे २०२४
समय - शाम ७ बजकर २८ मि.
सोच समझ के अगर जीये कोई व्यक्ति
सारी महक तो है स्वयं के, नजरिये की
दिल से दाद ही मिलती अच्छे सोच की
दुनिया तो बस्स, वहीं की वहीं होती है
लेकिन विचार कहाँसे कहाँ ले जातें हैं
विचारों को न चाहिए पटरी-पंखे-पहिये
सोच के अनुसार वें दौड़ कर पहुंच जाते
अपना-अपना कार्य करने में मश्गुल होते
बंदा अच्छा-बुरा निर्भर है उसकी सोच पे
शरम के मारे ढँक ही लेती मुँह, अच्छाई
फिर बन जाती है वह भी जैसे की बुराई
खुद जो है भला उसी को दिखे है भलाई
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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