कविता - 🌷 ' सहज अनुभव '
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - सोमवार, ६ में २०२४
समय - शाम, ७ बजकर ४६ मि.
आज़ न जाने क्यूं मन है
यूं भाव-विभोर इतना ...
की सब कुछ लगता है
मानो अनोखा सा सपना ...
कुछ साल पहले की है,
यह एक प्यारी-सी घटना
जन्मदिन मनाने गए थे
शिरडी में पहली ही दफा ...
वो बुधवार का दिन था ...
हौसला लिए हम निकलें
जैसे ही बाबा के शिरडी में,
प्रवेशें, आवाज दी एक बंदे ने
साईकिल पर सवार होकर
गया वो विश्राम स्थल लेकर
नहा-धोकर सीधे साई-दरबार
न कोई भीड़भाड़, ना इंतजार
अब तक यकीन ही नहीं होता
की मनुष्य रूप में स्वयं बाबा,
दर्शन का सहज अनुभव देने
पधारें साईकिल पे सवार होके
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉️🔆
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