कविता :🌷 ‘ समझने की बात ‘
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख : गुरुवार, २० जुलै २०२३
समय : दोपहर के ३ बज के १३ मि.
बंदे की बंदगी ऐसी उंचाई पर है ले जाती,
अनगिनत-भक्तों के मनमें, छबी बन जाती
जीवनभर के सत्कर्म बनातें हैं उसे महान्
हर भक्त के हृदय में रहता है अटल-स्थान !
गोरा-रंग-सुंदर-तन कुछ मायने रखता नही
उंचा कद-उंचा होदा-धन-संपत्ती कुछ नहीं !
सारी-की-सारी दुनियादारी होगी एक तरफ,
सबको प्यार से बांधना, शक्ती है दुसरी तरफ
महकते सप्तरंगी-फुलों के चमन एक तरफ
ईश्वरीय-कृपा की जादूई-खुशबू दुसरी तरफ
हर-रात आसमां में लाखों-सैंकडों है सितारे
धरती पे दिन-रात सिर्फ बाबा आप ही हमारे
काले-घने बादलों से घनघोर वर्षा बरसती है
बाबा का शुभाशीश-कृपांमृत की बरसात है !
साईं-के-दरबार में अगर सीने में होगा गुरूर,
दया-क्षमा-शांति-भावना से होगा वो चूरचूर !
ना चाह है पैसों की और न चाह है टकों की,
बाबा को आस है भक्ती के सच्चे लगन की !
बडप्पन-ताम-झाम शानों-शौकत, झूठमूठ की
ये सब दौलत की छनकार है बिना मतलब की
प्रेम से देना भूखों को भोजन, प्यासों को पानी
है यही सच्ची-सेवा-भक्ती, बात है समझने की !
कणकणमें-अणुरेणुमें-चराचरमें बसे हैं भगवान,
चहुओर हर जीव-में-है-शिव, तू मान-या-न-मान !
@तिलोत्तमा विजय लेले
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