कविता - 🌷 " शान से "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
अश्कों का क्या है,
वो तो बस्स बहने का बहाना ढूंढ़ते हैं…
जज़्बातों के महासागर में,
वे महज़ एक जरिया बनके रह जातें हैं…
यादगार तस्वीरें बने हुए,
जज़्बातों से भरे हुएं, वो मासूम से लम्हें...
लाख कोशिशोंके बावजूद,
वो चाहकर भी भुलाएं भूल नहीं सकतें…
बनावटी फूल रंगीन तो होते हैं,
पर वो महका नहीं करतें…
अगर दिल में जज़्बात सच्चे होते हैं,
तो दिखावा पसंद नहीं करते…
ग़मों से समझौता कर जीने से बेहतर है,
लड़ कर ही जीएंगे...
ईन-मीन चार-दिन की अपनी ज़िंदगी है,
जीएँगे या मरेंगे, मगर शान से…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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