कविता - 🌷 " शबनमी "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
मुद्दतों से यकीन नहीं होता कुदरत के करिश्मों पर,
जान भी निसार कर सकते हैं सिर्फ एक इशारे पर…
धुआं धुआं सा धुंधला, हो गया है अब सारा जहां…
झलक जो मन-दर्पणमें देखी, अब ढूंढ़ू कहां कहां…
मानो अपनी ही मौजसे परेशान ख़ुद दरिया हुआ है,
जो मुक़द्दर में न लिखा, सबकुछ होनेपर आमादा हैं…
आंखों पर पट्टी बांध कर यूं ही हैरान होता है दिवाना,
कुछ और न मिला, तो औकात पे उतरता है ज़माना…
ऐसी कईं बातें ज़हन में, दिन-रात टहलाने लग जायें…
ज़िद करके ना भी सोचें, तो सोच ही भटकती जायें…
इन्हीं टेढ़ी-मेढ़ी बातोंसे चांदनी भी तपिश सी लगें है,
वर्ना ज़िन्दगीकी धूप भी प्यारी सी शबनमी लगती है…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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