कविता : 🌷 ' ये पागल मन '
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख : गुरुवार, ६ जून २०२४
समय : रात, ८ वाजून ४६ मि.
यह मन भी कितना है पागल ...
ज़रासी हवा क्या गई बदल,
तो आशाओं की चादर ओढ़े
सपना देखने में हुआ़ मश्गुल ...
खुद हल्का होकर उड़ता रहा ...
खुशियों को गुन-गुनाता हुआ,
सप्तरंगों की धूम मचाता हुआ,
चहू ओर रोशनी, बॉंटता हुआ ...
भंवरे जैसा, फूलों को छूं कर ...
उनकी मीठी महक समेट कर,
खिल-खिलाती कली-कली पर ...
जादू यूं करकें आया जमीं पर !
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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