
ये कैसी प्यास
कविता - 🌷 " ये कैसी प्यास… "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
मोहब्बतों का सिला हो भी तो, कैसा हो
नहीं लौट पाए हैं कभी छोड़के जाने वाले…
सब के सब सदमे से, दूर भागते जरूर हैं
किसी के भी मुंह में तब नहीं होते निवालें…
मंजिल की ओर तो सब चल भी पड़ते हैं…
अब क्या करें जो पड़ जाएं पांवों में छालें…
हकीकत के आइने में, मुसीबतें दिखाई दें
जुनून ऐसा है कि रूकनेका नाम ही ना ले…
ख्यालों को ऊंचा उठाते हुए, पतंग उड़ा दी
हर दामनको रंगीन कर दें ऐसी खेलनी होरी…
लगन हो ऐसी कि दौड़े-दौड़े, बिना रुके चले
ये-कैसी-प्यास-है-प्रेमकी, नदी-सागरसे-मिले…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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