कविता - 🌷 " मौसम "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
कतई भरोसा नहीं बदलते हुए मौसम का
कल कुछ था, आज कुछ और ही है लगता…
मौसम बाहर से ज़्यादा, अंदर ही होता है
जैसे मन बदलेगा, मंज़र भी बदल जाता है…
अभी तक बस दो चार बूंदे भी गिरी नहीं,
और मौसम की शक्ल नशीली सी हो गई…
मौसम का रंग बदलते देर ही नहीं लगती
गायब-होवे-नज़ारा अगर पलकें-भी-झपकाईं…
वैसे एक पल भी बहुत है, फ़ैसले के लिए
फिर भी मौसम निकल जाता, सोचते सोचते…
न जाने कितने मौसम, यादों में ही खो दिये
मानो उम्र बीत गई है, यूं इंतज़ार करते-करते…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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