कविता - 🌷 " मनका समतोल "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - बुधवार, २४ एप्रिल २०२४
समतोल बिगड़ने से प्रकोप होता है
मन-बुद्धि-समतोल बेहद जरूरी है
व्यक्ति की सहने की मर्यादा होती है
उसी मर्यादा का ही सम्मान करना है
सीमा किसी भी प्रकारकी क्यूं न हो
परिसीमाओं के दरमियान ही सदा रहो
जैसे फुगे में हवा, पंपसे भरते-भरते
अगर कोई सही समय पर नहीं रुके
तो फुगे का फुट जाना अनिवार्य है
इन्सान के लिए भी ये बात लागू है
रोगीको अगर सही समय इलाज दें,
तो रोग से छुटकारा मिलना संभव है
मानसिक स्वास्थ्य सेहत सही रखेंगे,
तो प्रकृति निकोप सेहतमंद हो सकें
घर-परिवार में जो तान-तनाव होते हैं
बचने के लिए मनका समतोल चाहिए
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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