कविता - 🌷 " प्रबल-इच्छा-शक्ति "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - शनिवार, १० ऑगस्ट २०२४
समय - दोपहर १२ बजकर २८ मि.
मनुष्य के भीतर छिपी है, एक प्रबल शक्ति
जब तक हम अनजान हैं, काम नहीं आती
"जब जाग जाओ तभी सवेरा होगा " वरना
आंखें मूंद कर दिन-दहाड़े, आलम रात का
जो सही है, सच्चे मन से पाना भी चाहते हैं
उसे इच्छा-शक्ति की चेतना से पा सकते हैं
सिर्फ एक बात का ख्याल रखना ज़रूरी है
उस चीज को"गवाह"के दृष्टिसे ही देखना है
स्वयं को परे रखके अंजाम महसूस करना है
उस चीज़को स्वार्थी-भावोंसे परहेज़ करना है
जब ऐसा होता है,इच्छा-शक्ति कार्य करती है
जो सच्चे दिलसे चाहा,सत्य-रूपमें होता ही है
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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