कविता - 🌷 " प्रकृती-बनी-राधा "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
रंगोंकी प्यारीसी बरसात ये कौन कर रहा है
दिल को यूँ छूं के, अब ये कौन छिप गया है
नजरके सामने तो ये अद्भुत सुंदर नजारा है
मन के झरोंखे से भीतर- कौन झाँक रहा है
भिनी-भिनीसी सुगंध हवामें-कौन फैला रहा
मेरे मनको न जाने चुपकेसे कौन बहका रहा
यह किसकी आहट मेरे मनमें ऊमंगें ला रही
यह किसकी मधुर धुन, मनमें बीन बजा रही
अनोखा अन्देखा मयूर पंख पसारे बुला रहा है
मानो मनका कोना-कोना उसीपे फिदा हुआ है
बिना डोर, यह किस ओर मैं खिंची जा रही हूँ
ये कैसा अगम्य रूप है जिसमे बंधी जा रही हूँ
कोई तो बताए कौन कर रहा सभी पे यूँ जादू
पगलासी गई राधा साँवरेकी चाहमें यूं बेकाबू
राधा हँसी तो फूल खिलें, फैली खुशबू चहू ओर
महक ऊठी यह धरती ऋतु बसंत आई चितचोर
घनश्याम दबे पाँव आके चुरा लिया है हर-मन
प्रकृती बनी राधा, निखरी सज-धजके तन-मन
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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