कविता – 🌷 ‘ पाबंदी ‘

कविता - 🌷 ' पाबंदी '
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - ९ ऑक्टोबर २०२२
समय - रात ८ . ३० बजे

कारे-कारे घने बादलों से चंद्रमा
चुपके-चुपके से यूँ ही झाॅंक रहा...

चांदनीयों संग रास ऐसे रचाया,
मेरावाला चांद आस्मां से ताक रहा !

सोचूं, क्यूँ आता नहीं वो गगन से ?
सब जान के भी अंजान बन के...

सपनों में भी लुपा-छुपी खेले,
दिवाना ये दिल तो फिर क्या करे ?

नटखट मन ये मेरा, ऐसा नासमझ
कंम्बख्त किसी की भी ना माने...

सुन के अनसुना कर दे ये पागल...
बस् टकटकी लगाता चाॅंद की तरफ !

अपेक्षाओंसे तन-बदन हो जाता भारी...
भक्तीमें लीन मन, होता है अविकारी !

जब तन है जकड़े हुए बंधनों से बंदी,
मन पे न चले, किसी की भी पाबंदी !

🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉️🔆


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