कविता - 🌷 " दुबारा कैसे खिलें "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - मंगलवार, २ जुलाई २०२४
समय - रात १० बजकर ५९ मि.
चाहें मन में प्यार रहे, या कतई ना भी रहे
दुवाएं तो होनी चाहिये, एक दुसरे के लिये
यौवन तो अंगडाई लेकर पिछले दरवाज़े से
ओझल होने वाला है, चाहें हूर हो या अप्सरा
सुंदरता मन की शायद कभी कम नहीं होती
पर तन-बदन की चंचलता पिघलने है लगती
ऐसे में अगर अपने भी, बेगाने बन कर फीरें
तो मुरझा हुआ दिल, फिर दुबारा कैसे खिलें
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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