कविता - 🌷" दस्तक "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
ठंडी-ठंडी हवा का झोंका यूं दस्तक देता होगा
मन के दर्पण में कोई अपना ही झांकता होगा…
मानो इक उम्र बीत रहीं है दिलको टटोलते हुए
कैसे ऐतबार करें यूं अंजाने में हंसते-हंसाते हुए…
साथ का लुत्फ़, वो हसीनसा जाना-पहचाना सा
कही यूं ही अचानक पूरा होगा सपना अधूरा सा…
कश्मकश में ही सुनहरे सुबह की शाम हो चुकी
वादा पूरा होकर सामने आएं, उम्मीद भी फीकी…
जलते हुए च़राग अब बुझने तक की नौबत आई
कसमें-वादें निभाने क़दम उठाने, तैयार नहीं कोई…
कोई भी वादा-निभाने-पयाम-भेजने, आता होगा
गुफ़्तुगू नहीं तो ना सही, नज़रों को मिलाता होगा…
यूं रूठके चले जानेसे आखिर क्या हासिल होगा
उम्मीदका दामन थामनेसे, समय तो कट जाएगा…
क्या भरोसा है जिंदगी की राहें कभी मिलेंगी भी
आशा की किरणों से हर-पल को रौशन कर देगी…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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