कविता :🌷 " तितलियां कैसी कैसी "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
मन भी है अति चंचल जैसे मानो उड़ती तितली
एक पल ठहरे, फ़िर भरे उड़ान जैसे वो बिजली…
बचपन में मासूमियत थी तितलियां पकड़ने की
बहुत दिलचस्प कहानी, बचपन से बिछड़ने की…
जब जब रंग बिरंगी तितलियां आती हैं नज़र में,
फ़िर बिना डोर खिंचे हम चले जाते थे पीछे-पीछे…
गुलशन-गुलशन खिलें फूलों से बाग़बान की झोली
उमंगें नादान भंवरों के दिलों में जज़्बातों की टोली…
सुलग रहे हो जब दिल यूं ही बेचारे तमाम भंवरों के
फूल भी डालीं-डालीं पर उछलने-मचलने लग जाएं…
मुरझाए फ़ूलों के इर्द-गिर्द तितलियां भटकती नहीं,
जब मन है खुशमिजाज, फ़िर भंवरों की क्या कमी ?
हरेक चमन में सब जाने हैं खामोशियों की सरगोशी…
फूल-फूलपे मंडराके गुन-गुनाती तितलियों की मस्ती…
मीठे मधु के खातिर तितलियां हैं चंचलता की मूर्ति…
जब जिस फूल पे मन आएं, बस्स उसीकी हो जाती…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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