
कविता – 🌷 ” तलाश “
कवयित्री – तिलोत्तमा विजय लेले
कभी-कभी तनहा रह जाती है तन्हाईयां…
और
बातें करने लगती हैं, गुमसुम ख़ामोशियां…
गुमशुदा शब्दों से अवगत कराता है गुरूर…
लेकिन
बादमें पता चलता, सही में कौन है मगरूर
अकेले रहना एक बात, हो जाती है आदत
मगर
अकेलापन कुछ और ही है, चुभती है चुभन
चाहे दिन हो, रात-हो साथ-निभाते-हैं-सन्नाटे
और
गुलाबकी कोमल पंखुड़ियों में चुभते हैं कांटे
हताश करने वाले आसानी से पीछा न छोड़ें
फ़िर भी
तलाश जारी है सच्चे दोस्त की जो साथ देदे
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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