
कविता - 🌷" तन्हाई "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
और कोई साथ चाहें दे, या ना भी दे
"तन्हाई" कभी भी मेरा साथ न छोड़ें...
घरमें सबसे छोटी होनेसे लाड़-प्यारमें,
बचपन बीत गया हंसते-खेलते दुलारमें
जवानी-दिवानी सी, सहेलियों के साथ
दुनियाभर की मौज-मस्ती हंसी-मजाक
पता नहीं देखते-देखते हम कब बड़े हुए
और मोतीयों-के-टूटे-हार-जैसे बिखर गए
तब पहली बार तन्हाई से पाला पड़ गया…
तबसे लेके उसने मानो घर ही बना लिया…
बाकी सब रिश्ते-नाते मानो-हैं-भी-नहीं-भी...
पर"तन्हाई"लंबी गहरीसी परछाई बन बैठी
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉🔆
Leave a Reply