कविता :🌷 " ज़िंदगी का फ़लसफ़ा "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
झूम-झूम के लहराएं नदियों का पानी
सागर से मिलने की, ये तमन्ना पुरानी…
नदी अंतर्आत्मा होकर परब्रह्म है दरिया
मिलन-की-आस लिएं, दौड़ती है नदियां…
प्रकृति के कईं कईं राज़, मालूम होते हैं…
बहतें हुए पानी से, मन के भाव बहते हैं…
जब सागर से धरती का मिलन होता है,
रेत के कईं किनारे, निर्मित होते रहते हैं…
पथमें आनेवाले पाथर चकनाचूर होते हैं…
जो बचे-खुचें, वो गोल-मटोल हो जाते हैं…
सागर का जब, अंबर से मिलन होता है,
तब विश्व में ' अनन्त ' निर्मित-हो-जाता है…
सागर और नदी से, ज़िंदगी का फ़लसफ़ा…
खेल युगों-युगोंसे दोनों में चलता ही रहता…
जीवोंका अलगसा अस्तित्व है परमेश्वर से
जैसे नदियोंका विशाल-काय महासागर से…
अवसान बिन्दु पर आके नदी का अस्तित्व,
समुंदर में विलीन होकर, मिलता है पूर्णत्व…
जैसे ज़िन्दगी में जीवों का अपना अस्तित्व…
देहांत-पश्चात विलीन जीव होतें हैं पंच-तत्व…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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