कविता - 🌷 " जब जागो "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
इतनी उम्र बीती पर बात समझ में न आयीं
खुशियां जो मुठ्ठीमें बिल्कुल बंद कर दी थी
बेपरवाही से हल्के-हल्के छुटने लग गई थी
फिरभी आंखों पे पट्टी बांधे गुमसुम सी रही
बचपन से लेकर जो जो भी सपने, देखें थें
जवानी बीतायी थी, उन सभी को सच होते
अकारण थोड़ी बेफिक्र सी हो गई थी मनमें
काफी देर कर दी,बिना मतलब की बातों मे
भूली नत-मस्तक हो जाना, ईश्वरीय-ऋण में
उलझनें बढ़ातीं गई दिनरात समय गंवाने में
जब सच्ची बात समझ में आई, देर हो चुकी
फिर भी"देर आए दुरुस्त आए"ये बात पक्की
"जब जागो तभी सवेरा"वरना रात का अंधेरा
विधाता को याद करके, तन-मन-हुआ-उजियारा
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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