
कविता :🌷 " चाहतों की बारिशें "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
दिल ने जितना चाहे रोकना भी चाहा,
फ़िर भी तन्हाईका मौसम आ ही गया…
तन्हां दिल की लौ मद्धम मद्धम हो गई
शायद मुक़द्दर भी ज़रा ज़रा, बेरहम है…
गहरी ख़ामोशियों की, छाया में है जहां…
जुदाई के भंवरमें, फंसा हुआ हर लम्हां…
रात तो यूं ही क़तरा क़तरा पिघलती है…
आंखें नम सी हैं, खोयी खोयी यादों में…
रिम-झिम बरसती चाहतों-की-बारिश में…
कैसे कोई जिएं, तन्हाइयों की तपिश में…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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