कविता : 🌷 ” चंद लकीरें “


कविता : 🌷 " चंद लकीरें "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले

चंद ही लकीरों से सुंदर सी छबि बनती है
कुछ लकीरें तो, दो दिलों को जुड़ा देती हैं…

धूप की चुनरी ओढ़के मानो धरती है सजीं
हीरो जैसी चमकती रेत, बन गईं हैं बाराती…

केकड़ों सी टेढ़ी-मेढ़ी-चाल चल रही पुरवाई
खींचके लकीरें प्रकृति सांप-सीढ़ी खेल रही…

जवानीके दिनों मश्गूल थे नैनों के इशारोंमें
हर कोई खोया था, अपनी-अपनी दुनियामें…

कोई जिस्म से हार गयें, तो कोई दिमाग से
पर नसीब वाले लकीरों से कभी नहीं डरतें…

सामने स्वयं मचलता हुआ समुंदर होके भी
मायूसी में, लोग बस्स तारें ही गिनतें रह गए…

सब-कुछ समाया होता है अपने हाथों में ही
पर देखा जाए तो सच में होता कुछ भी नहीं…

🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉️🔆

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