कविता - 🌷 " गुस्ताखियां "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
रसिकों के लिए दिलो-दिमाग पर काबू पा लेना,
जैसे कि बेलगाम बुलंद घोड़े पर सवार हो जाना…
ऐसे में अगर कोई हसीनसा चेहरा कर दें घायल,
गुस्ताख़ नजरोंके तीर छोड़कर, बना दें यूं पागल…
बिना उठे ही, वो चंचल ग़ुस्ताख़ियां निगाहों की…
इजाज़त-के-बग़ैर ही दिलो-दिमाग पर, हैं छा जाती…
वो क़ातिल नज़रें यूं ग़ज़ब करतीं जाएँ, सरेआम…
दिन-दहाड़े कर देती हैं वे प्रेमियों का काम तमाम…
जादुई ग़ुस्ताख़ दिल की खताएं, कुछ यूँ होती है…
यूँ आँख लड़ी नहीं और दिल घायल हो जाता है…
तब इन सभी में से, असली कुसूरवार कौन होगा…
हसीनाएं, घायल-दिल या आंखों की गुस्ताखियां…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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