कविता - 🌷" गिले-शिकवे "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
प्रेम-भरे-वो-शर्मिले-दो-नैन, लगने लगे हैं इतने अज़ीज़
गिले-शिकवे भुला कर सदा हो गए हैं, दिल के करीब
बेरुखीके आलममें कभी बिन बादल बरसात हो जाये
कभी हल्की सी मुस्कान तो कभी गुरूर ही मिल जाएं
कभी-कभार बाहों के हार, तो कभी वो गुमशुदा रूठके
पता नहीं मौसम से शिकायत-करें, या फिर किस्मत से
नसीहत देने वाले, आसानीसे सैकड़ों बंदे मिल जाते हैं
जब जरूरत होती है, दिलवाले ही दौड़-कर साथ-देते-हैं
सच्चा दिलवाला कोई मिल जाएं, तो कायनात साथ दे
अगर जज़्बातों में खोंट है तो सृष्टि का कण-कण बताएं
दिलके अरमान जितने छुपाने चाहें और ही दिखाई दियें
अगर दुनिया अंधों की नगरी है, तो फिर भगवान बचायें
दिल-अगर-सच्चा-है तो फिर गैरों से क्यूँ-करे-गिले-शिकवे
आये-दिन सागर में तो आते-जाते हैं, कईं-तुफान-छोटे-बडे
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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