कविता : 🌷 " क्यों "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
आफ़त से भरी हुई ज़ोरों शोरों की हवा क्या आयीं,
बेचारे पंछीओं के घरौंदोंको भी साथ-साथ ले गयी…
दिन-रात मेहनत से, तिनका-तिनका इकट्ठा करना…
विनाश-की-लत में, तूफ़ान क्या जाने घरौंदा बनाना…
रूप बदलकर आंधी-तूफान आतें हैं, खलबली मचाने…
स्वयं महासागर होते हुए, क्यों कर डरना लहरों से ?
घर-घरमें मानो निकल रहा हो पैसों का रंगीन धुआं,
फ़िर भी हालात ऐसे, मन ढूंढता है शांति कहां कहां…
जन्म से लेकर, पचास-साठ रिश्ते-नातों का जंजाल…
फ़िर मन बेचारा क्यों भुगतें है एकांतवास का जाल…
पता नहीं क्यों, दुनिया बसाने हेतु कसके पकड़ लेते हैं…
फ़िर शोरगुल मचातें हैं, "माया के जंजालमें फंस गयें हैं"…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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