कविता - 🌷 " कुदरत के नियम "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
मनुष्य एक ऐसा प्यासा बंदा है की
उसकी प्यास कभी, बुझती ही नहीं...
जन्मसे लेकर आखरी सांस तक भी
वह बटोरना-कभी, थमाता-ही-नहीं...
बचपन में ज्ञान की लालसा होती है,
युवा-कालमें, प्रेम की तलाश होती है...
फिर पैसा कमानेमें कड़ी दौड़धूप ही...
आखिरतक उसका पीछा छोड़ती नहीं...
धन-दौलत, नाम-शोहरत, जायदाद भी...
इन्सानकी भूख-प्यास ना मिटती कभी...
कुदरत तमाम तमाशे देखकर हँसती है...
बंदा जानकरभी अंजान-बना-फिरता है...
जिंदगी-भरमें जो कमाया, वो दानमें दे दो...
या आयु-गवांके-जो-बटोरा, यहीं-छोड़े-जाओ...
जीवन लुटाकर जमा की हुई पूंजी साथ में...
अबतक-न-ले-जा-सका-कोई न-भविष्यमेंभी...
क्युंकी कुदरत के नियम बड़े ही सीधे-साधे...
खाली हाथ आएं और खाली हाथ ही जायें...
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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