कविता – 🌷 ” कुछ लम्हें “

कविता - 🌷 " कुछ लम्हें "

कविता - 🌷 " कुछ लम्हें "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले

जेबसे फकीर होकर भी, दिल अमीरों से अमीर ही थे
रूखी सूखी जो भी हो मिल बांटके ख़ुशी-ख़ुशी खातें

तब कभी जेब होती खाली, तो कभी मन होता खाली
कभी दोस्तों की कमी तो कभी-कभी कमी, समय की

भरे बाज़ार में खाली हाथ घूमने में जो मजा आता था
वो भर-भरकर खरीदकर सब-कुछ घर ले आनेमें कहां ?

अब तो भरी-भरीसी जेबें हैं और दोस्तोंका खूब है डेरा
पर मानो मन से, सब ख्वाहिशें ही हो गई नौ-दो-ग्यारह

कड़कती धूपमें जल भी जाओ, कोई फर्क नहीं पड़ता
अपनों से छांव की उम्मीद न रखना ही बेहतर है होता

सुखमें साथ देने तो सब ही हैं पर ग़मोंमें कौन साथ दें ?
जितनी उंगलियां, उतने किस्मके दुनियामें लोग होते हैं

कुछ लम्हें सिर्फ जीनेका तजुर्बा देने केलिए ही होते हैं
जिगर बड़ा हो तो फिर सब कुछ, आसान सा लगता है

🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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