कविता - 🌷 ' कामना '
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - शनिवार, २० एप्रिल २०२४
समय - रात के १० बजे
न जाने क्यूँ, हर दिन हर पल है पागल
ढूँढ रही हैं आँखें जो जिंदगीसे ओझल
आस्मान के चंद्रमाका यहीं अधूरा-पन,
खूबसूरती निखार देता है, दिन-ब-दिन
बातही कुछ खास है, पूनम के चाँद की
भिनीभिनी, शितल रोशनी मनभावनसी
पलकें बिछाये, हसीना दिन-रात यूँ जागेे
अंश का परम-तत्व से, मिलन होते-होते
आत्माका परमात्मासे संगम होना जरूरी,
हर-मनकी ये कामना कभी ना रहे अधुरी
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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