कविता - 🌷 " कली-कली खिली "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
सुबह-सुबह की सुनहरी किरने आयी
संग-संग प्यारभरी ढेरों खुशियाॅं लायी
खिले-हुए अंतरमन में उजियारा फैला
मन में जो था मैल,पलभर में पिघला
आनंद की लहरें तन-मन में उछल गई
कारी-कारी रात फिर से कभी न आयी
झूम-झूम के आया, फिर से वो सावन
दिन-रात राह ताके री पिया मनभावन
छेडती नटखट सखी, बिना कुछ कारन
यूंही तंग करे सब मोहे कैसे समझावन
चांदनी रातमें चंद्रिका नभ में नाच रही
ठंडी-ठंडी शीतल पवन भी, बहका रही
बसंत ऋतु-कली-कली खिल के मुस्कायी
झूम उठी धरती, भावसे विभोर हो गयी
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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