कविता - 🌷 " कभी धूप-कभी छाँव "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
देखा जाए तो जीवन की राह बड़ी आसान सी
ये मुआं चंचल-मन बनाता है उसे टेढ़ी-मेढ़ी सी
जैसे कोई कुत्ते की दुंग सीधी नहीं कर सकता
इस बावरें दिल को सीधे रास्ते ला नहीं सकता
एक बार असंभव को संभव करना मुमकिन है
पर बंदर जैसे चित्त को स्थिर-करना-मुश्किल है
कभी पतंग बनकर आसमानमें, लहराता रहें वो
तो कभी नैया बनकर झील-के-पानीमें खेलें वो
कभी पंछी बनकर, मीठी सी धुन सुनाता फिरे
तो कभी-कभार भंवरा बने, गुनगुन करता फिरे
जैसे-जैसे वह रूप बदले, वैसा जीवनमें बदलाव
कभी तपती-धूप तो कभी बिल्कुल ठंडीसी छाँव
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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