कविता - 🌷 " इल्तिज़ा "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
जरूरी नहीं है कि निराशा से हार मानते हुए,
हाथोंपे हाथ धरे, दिनमें भी तारे ही गिनते रहें…
जरूरी नहीं कि आधा भरा हुआ प्याला थाम ले,
और "भला ये आधा ख़ाली क्यों "अफसोस करें…
जरूरी नहीं किसी बद् दिमाग़ने गाय को मारा हो,
इसलिए गुस्से में जा कर, बछड़े को भी मार डालो…
आमदनी कम हो और घर-गृहस्थी में भी तंगी हो,
जरूरी नहीं, मजबूरी में बच्चोंको कमाने भेज दो…
कोई चीज अगर सबसे ज्या़दा पसंदीदा हो जाएं,
जरूरी नहीं कि सारा समय उसीका लुत्फ़ उठाएं…
जरूरी नहीं कि सारे-के-सारे काम-धाम छोड़कर
रात-दिन बस्स माला जपते हुए ही समय बिताएं…
निस्वार्थ भावसे जरूरतमंदोंकी सहायता करना भी
किसी भी प्रकारकी ईश्वर-भक्तिसे बिल्कुल कम नहीं
जादुई छड़ी की कारिगरी से खत्म हो मुसीबतें सारी
जरूरी नहीं, कि यूँ ही अचानक से इल्तिज़ा हो पूरी…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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