कविता - 🌷 " इंतज़ार "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
रात फिरभी कट ही जाती है यूं करवटें बदलते हुए
दिन हो जाते पहाड़ों जैसे बीतनें का नाम हीं ना ले
इंतज़ार करते-करते, एक अरसा तो बीत चुका है
वो कभी बहतीं हवा तो कभी धुंध बनकर आते हैं
अब लगता है कि इंतज़ार की घड़ियां खत्म हो गई
अचानक मौसमने करवट बदली, घांस हरी हो गई
इंतज़ारकी दहलीज़ पे समयका कपूर धुआं-धुआं
अब रात पिघल रही, चांदनी संग-चांद, छुपा हुआ
उम्मीदों से भरे हुए दिल में, लज्ज़त है इंतज़ार की
हर एक आहट दस्तक देती है, साजन के आने की
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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