
कविता - 🌷 " इंतज़ार "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
इंतज़ार की दहलीज़ पर जब कदम रख दिए
पता न चला कब-कैसे दिन-दिन बितते ही गए
देखते देखते सुंदरसे सुबह की शाम होती रही
पर इंतज़ार ख़त्म होनेका नामोनिशान भी नहीं
ढँलती हुई संध्या, संग सूरज भी ढँलता जा रहा
चाहतका मौसम ही इंतज़ारकी घड़ियां है लाया
अरमान तो ऐसे हैं की लाखों खुशियां हो कुर्बान
पता नहीं किस्मत में और कितने लिखे इम्तिहान
कभी-कभी कुछ गुल कमाल का हुनर दिखातें हैं
इंतज़ार है बहारों का, वो आएं साथमें-जन्नत-लिए
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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