कविता - 🌷 ' आप-स्वयंके भीतर "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - बुधवार ७ जून २०१७
पूरे राज-महल में जंग जंग पछाड़ा,
कोना कोना सौ-सौ बार छान मारा
पर प्रल्हाद के भगवान का कहीं भी
नामों निशान तक ना मिला, फिर भी
दानव-राजने कतई हार ही नहीं मानी
डरा-धमकाकर पूछ-ताछ जारी रखी
आखिर तंग आके प्रल्हादसे फिर पूछा,
"सचसच बोल तुम्हारे भगवान हैं कहाँ"
उन्हें, परम भक्त-प्रल्हादने जवाब दिया,
ईश्वर है, जहां-जहाँ भक्तिभाव और दया...
जहाँ प्रेमकी बाती, वहाँ है उनका साया
जहाँ सदाचारकी ज्योती, वें बनते दीया...
चराचर-जगतके कण-कणमें समाँये हैं...
हर एक के तन में, मन में, बँसें वो ही हैं...
अपने भीतर जरा निगाहें बंद कर झाँको,
आप-स्वयं के अंतर में भी विद्यमान हैं वो...
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
Leave a Reply