कविता :🌷 " आंखों में कोहरा "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
आंखोंमें ऐसा कोहरा अभी भी छाया हुआ
सामने होके भी दिखाई न दिया कोई साया…
तलाश जारी है किसी ऐसे ही अजनबी की
जो वापस लेकर आ जाएं, ज़िंदगी में ख़ुशी…
मनका-दर्पण, घर-आंगन, क्षितिज-आकाश
न जाने क्यों आज-कल रहते हैं सब उदास…
हाल में तो झर-झर झरते हुए झरनों ने भी,
हम ही से रूठके बिल्कुल लगा दी हैं चुप्पी…
चहकती हुई चिड़ियां भी यूंही उड़ जाती है,
जाने क्या हुआ होगा जो नींद तक गायब है…
अजनबी को ढूंढते हुए एक अरसां है बीता
फ़िर भी मालूम ही ना हुआ कोई अता-पता…
शायद वो जान बुझ कर छिपा है ख्वाबों में
कोई तो जाकर उसे सामने लाएं, वास्तव में…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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