कविता :🌷 " आंखें हैं प्यासी "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
काली काली रात अब तो खत्म होने ही वाली है
आंखें हैं तरसीं की, सुनहरी सुबह आज़ होनी है…
झुलसती तल्खी अभी बाकी बैसाखी की मस्तीमें
आंखें हैं प्यासी की शानदार-बरखा-रानी आनी है…
सदियों से मंडराते हुए दुखभरे बादल जो हैं छाएं,
आंखें हैं तरसीं खुशियोंके सागर भी उछलके गाएं…
वहीं लहरें, वहीं ढलता हुआ सूरज, वहीं महासागर
आंखें तरसीं चहू-ओर हों इंद्रधनुष की रंगीन चादर…
आंखें हैं प्यासी, देखने लहलहाती फसल खेतों में…
रूहें हैं कबकी तरसीं, अनुभवें खुशहाली घर-घरमें…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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