कविता -🌷 " अपेक्षाओं का दायरा "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - २१ नोव्हेंबर २०१६
हम हरदम हर-एकसे और हमेशा ही
हर रिश्ते से खूब अपेक्षाएं हैं रखते ...
अपेक्षा रखना कोई बुरी बात तो नहीं,
लेकिन सिर्फ एकतरफा सोचना ही ...
फिर अवास्तव अपेक्षाएं बोझ बनके,
रिश्तोंमे दरार डालें, यह अच्छी बात नही
अपनी माँ सें सदा,"समझ"लेनेकी अपेक्षा
चाहे कुछ भी क्यूँ न हो जाये उंचा-नीचा ...
हर हालात में ममता बरसाने की अपेक्षा ...
अपने जन्मदाता-पितासे, सहारेकी अपेक्षा ...
सहारा, चाहे हो शब्दोंका सहारा,
या चाहे हो "अर्थ "का ...
या फ़िर उनकी जायदाद का ...
अपने भाईसे अपेक्षा, प्यार और भाईचारा ...
सदा बचपन के दिन याद रखना,
हर छोटा-बडा वाकया, वादा ...
हर-एक, प्यार-भरा लम्हा ...
कभी भी ना भूलना ...
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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